चबाये जीभ से हमने जो तौफे में मिले नश्तर सिये लव रेश्मी धागे से सजाया उन पे रख पत्थर कभी कोई आह की सिलवट न पड़ने दी खामोशी पर कि निभ जाए निभानी है हाँ इसी बात का था डर पर अब दरिया मेरी हद का मेरे कुछ बाँध तोडेगा होगी रूस्वाई मेरी भी पर जग तुमको न छोडेगा #घरेलूहिंसा #कविता #दर्द #नारीसशक्तिकरण #yqbaba #yqdidi #randomthoughts #poetry