उम्मीद की किरण के, लाले पड़े हुए हैं" पले हैं बस्तियों की गर्दिशो में, अंधेरों में बड़े हुए हैं। रहने का ठिकाना नहीं है, आसमां तले पड़े हुए हैं। जलाके राख न कर दे दिल के अरमां, ज़माने की कोई चिंगारी। मुफ्त में मिट जाए ना नामोनिशान अपना, इसी फिकर में कुछ डरे हुए हैं। कहां से लाएं मुकद्दर की रोशनी, उम्मीद की किरण के, लाले पड़े हुए हैं। अट्टालिकाएं देखते फिरते हैं शहर में हर दिन, जहां नजर पड़ी, ताले पड़े हुए हैं। ©Anuj Ray #उम्मीद की किरण के' लाले पड़े हुए हैं"