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विकल्प जीवन में चारों ओर अ

विकल्प                         जीवन में चारों ओर अंधेरा दिखने लगे, अकेलापन महसूस होने लगे, कोई अपना न दिखे , सांसारिक रिश्ते पराए होने लगे तो ईश्वर की शरण में जाना चाहिए। मनुष्य का स्वभाव है कि सांसारिक सुख पाकर ईश्वर को भूलने की गलती करता है। इस संसार में आकर हम स्वार्थ वश एक दूसरे के करीब होते हैं, संबंध जोड़ते हैं,अरमानों की दुनियां बसाना शुरू करते हैं। लेकिन जब वही स्वार्थ पूरा नहीं होता जीवन का रूप ही बदल जाता है। हम एक दूसरे से दूरी बनाना शुरू करते हैं। क्या कभी इन्सान ये सोंचता है कि जिस परमात्मा ने हमें सब कुछ दिया वो  हम से कौन सा स्वार्थ चाहता है? उत्तर होगा कुछ नहीं। हमारी कोई न माने तो दुःख होता है या आसमान सिर पर उठा लेते हैं लेकिन वो कृपा सिंधु हर पल क्षमा करता रहता है। इस दुनियां में रहो तो जरूर लेकिन नेह उन्हीं से जोड़ो जो भव से पार करते हैं। * जो प्रभु दीनदयालु कहवा, आरती हरण वेद यश गावा। जपहु नाम जन आरती भारी, मिट ही कुसंकट होहि सुखरी। दीनदयाल विरद संभारी, हरहुं नाथ मम संकट भारी।🌹🙏जय श्री राम जय श्री कृष्ण जय श्री राधे।

©नागेंद्र किशोर सिंह # विकल्प
विकल्प                         जीवन में चारों ओर अंधेरा दिखने लगे, अकेलापन महसूस होने लगे, कोई अपना न दिखे , सांसारिक रिश्ते पराए होने लगे तो ईश्वर की शरण में जाना चाहिए। मनुष्य का स्वभाव है कि सांसारिक सुख पाकर ईश्वर को भूलने की गलती करता है। इस संसार में आकर हम स्वार्थ वश एक दूसरे के करीब होते हैं, संबंध जोड़ते हैं,अरमानों की दुनियां बसाना शुरू करते हैं। लेकिन जब वही स्वार्थ पूरा नहीं होता जीवन का रूप ही बदल जाता है। हम एक दूसरे से दूरी बनाना शुरू करते हैं। क्या कभी इन्सान ये सोंचता है कि जिस परमात्मा ने हमें सब कुछ दिया वो  हम से कौन सा स्वार्थ चाहता है? उत्तर होगा कुछ नहीं। हमारी कोई न माने तो दुःख होता है या आसमान सिर पर उठा लेते हैं लेकिन वो कृपा सिंधु हर पल क्षमा करता रहता है। इस दुनियां में रहो तो जरूर लेकिन नेह उन्हीं से जोड़ो जो भव से पार करते हैं। * जो प्रभु दीनदयालु कहवा, आरती हरण वेद यश गावा। जपहु नाम जन आरती भारी, मिट ही कुसंकट होहि सुखरी। दीनदयाल विरद संभारी, हरहुं नाथ मम संकट भारी।🌹🙏जय श्री राम जय श्री कृष्ण जय श्री राधे।

©नागेंद्र किशोर सिंह # विकल्प