पहले जब आती थीं घरों में चिट्ठियाँ रौनक लाती थीं तब घरों में चिट्ठियाँ बेसब्र हुए रहते थे पढ़ने को चिट्ठियाँ कहां विलुप्त हो गईं अब ये चिट्ठियाँ शोक संदेश भी तब इसी पर आते थे उस समय तब इसको तार कहते थे कोना फाड़ कर इसको पेश करते थे घर में नहीं इसको सुरक्षित रखते थे अन्य कोई खबर हो तो वो भी आती थी नहीं कोई छेड़-छाड़ इसमें की जाती थी खुश खबर हो तो आँखें भीग जाती थीं और गलत खबर पर लाल हो जाती थीं चिट्ठियों का दौर भी अब तो खत्म हो गया दिनों का इंतजार अब दिन में सिमट गया फोन आया जब से अब लिखना मिट गया पढ़ने की बजाए बात कर साधन मिल गया पहले जब आती थीं घरों में चिट्ठियाँ रौनक लाती थीं तब घरों में चिट्ठियाँ बेसब्र हुए रहते थे पढ़ने को चिट्ठियाँ कहां विलुप्त हो गईं अब ये चिट्ठियाँ .............................................................. देवेश दीक्षित 7982437710 ©Devesh Dixit #chitthiyan #चिट्ठियाँ #nojotohindi # Sia ki कहानियां कवि संतोष बड़कुर