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प्रश्न के उलझाव में इस जिन्दगी को जीना, कितना कठि

प्रश्न के उलझाव में

इस जिन्दगी को जीना, कितना कठिन है, 
मेरे साथ तुम नहीं हो, बस यही प्रश्न है ।
प्रश्न भी अब ये बन गया, कितना कठिन है, 
बाहर इससे निकल पाना, उतना जटिल है ।

याद आती है तुम्हारी मुझे, हर समय दिन - रात को, 
रात को सो पाना भी तेरे ख्वाबों में, कितना कठिन है ।
बस गई हो इस तरह तुम, मेरे दिल और दिमाग़ में, 
अब तुमसे दूर रह पाना, मेरी जान कितना कठिन है ।

प्यारी सी तुम्हारी वो आँखें और तुम्हारा वो हँसकर शर्माना, 
तुम्हारी वो ज़ालिम अदाएँ और तुम्हारा वो हर वक़्त इठलाना, 
मुझे अपने कर्तव्य को आता है, बहुत अच्छे से निभाना,
लेकिन रूठे हुए साथी को, बहुत कठिन होता है मनाना ।

कैसे भुला सकता हूँ तेरे प्यार को, जिस पर मैं आज तक फिदा हूँ, 
ये समय का कैसा चक्र है, जो आज मैं अपनी प्रेमिका से जुदा हूँ ।
प्रश्न तो मेरे चिंतित मन में आज, बस यही उठ रहा है, 
तू जाने कहाँ चली गई है, मुझे ये बिल्कुल नहीं पता है ।


- Devendra Kumar (देवेंद्र कुमार) # प्रश्न के उलझाव में
प्रश्न के उलझाव में

इस जिन्दगी को जीना, कितना कठिन है, 
मेरे साथ तुम नहीं हो, बस यही प्रश्न है ।
प्रश्न भी अब ये बन गया, कितना कठिन है, 
बाहर इससे निकल पाना, उतना जटिल है ।

याद आती है तुम्हारी मुझे, हर समय दिन - रात को, 
रात को सो पाना भी तेरे ख्वाबों में, कितना कठिन है ।
बस गई हो इस तरह तुम, मेरे दिल और दिमाग़ में, 
अब तुमसे दूर रह पाना, मेरी जान कितना कठिन है ।

प्यारी सी तुम्हारी वो आँखें और तुम्हारा वो हँसकर शर्माना, 
तुम्हारी वो ज़ालिम अदाएँ और तुम्हारा वो हर वक़्त इठलाना, 
मुझे अपने कर्तव्य को आता है, बहुत अच्छे से निभाना,
लेकिन रूठे हुए साथी को, बहुत कठिन होता है मनाना ।

कैसे भुला सकता हूँ तेरे प्यार को, जिस पर मैं आज तक फिदा हूँ, 
ये समय का कैसा चक्र है, जो आज मैं अपनी प्रेमिका से जुदा हूँ ।
प्रश्न तो मेरे चिंतित मन में आज, बस यही उठ रहा है, 
तू जाने कहाँ चली गई है, मुझे ये बिल्कुल नहीं पता है ।


- Devendra Kumar (देवेंद्र कुमार) # प्रश्न के उलझाव में