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शीर्षक - हौसला का घर... हमने हौसलों से एक घ





शीर्षक - हौसला का घर...



हमने हौसलों से एक घर बनने लगा
बहती पुरबिया को देख दिल मचलने लगा
उस घर के इर्द-गिर्द बस हम ही दो थे
एक तहज़ीब की मरीज़, तो एक अल्हड़ सी जवानी थे

पुश्तैनी मकान न बना पाया था तो ,
एक सीधी रेखा में ही बना लिये एक घर नया
उसमें एक दो ही चीजें थे कुछ पुराना कुछ नया
हमने हौसलों से एक घर बनने लगा........

पुराने में वो थी, और नये में भी वो ही थी
लिबास के हिसाब से पुराने थी मगर उम्दा थी
मैं तो एक किनारे लगे बस देख और देखता ही रह गया
वो जवां हसीन मेरे बातों का संगम सी धारा थी.....

जिसे वक्त के साथ लिये कभी पहुंचाया करते थे
वह देख कर मुस्कुरा रही थी, और फिर देर तक इधर ही देख रही थी
कौन पूछें इस वक्त कितनों की दौलत मुझे पर लुटा रही थी
इस चांद की चांदनी में वह और अपनी आभा निखार रही थी

©Dev Rishi
  #chaandsifarish #हौसलानहींछोड़ा