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ग़ज़ल:_ दास्तान-ए-ग़म ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी है, क

ग़ज़ल:_ दास्तान-ए-ग़म 

ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी है, कुछ नहीं है सोचने के लिए 
यूँही बहता लहू 'अश्क' बन, कोई नहीं पोछने के लिए 

हर हाथ की उंगलियां उठती है, जिस्म नोचने के लिए 
हर ये आँखे उठती है, इज्ज़त तार-तार करने के लिए 

बेटी,बहन, कोई भी रिश्ता नहीं, हवस मिटाने के लिए 
मानसिकता का दोष या बहाना है बस सताने के लिए 

हमबिस्तर करना चाहत सभी की सिर्फ़ वस्तु सी हूँ मैं 
इज्ज़त लेना, देना नहीं, सिर्फ़ हूँ मैं आज़माने के लिए 

किस से रूठे हम यूँ, कोई तो हो ? हमें मनाने के लिए 
पल भर साथ है, कोई नहीं है उम्र भर निभाने के लिए 
 कवि सम्मलेन 3 तृतीय ग़ज़ल 
#collabwithकोराकाग़ज़ #kkकविसम्मेलन3 #kk_krishna_prem #kkकविसम्मेलन #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़
ग़ज़ल:_ दास्तान-ए-ग़म 

ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी है, कुछ नहीं है सोचने के लिए 
यूँही बहता लहू 'अश्क' बन, कोई नहीं पोछने के लिए 

हर हाथ की उंगलियां उठती है, जिस्म नोचने के लिए 
हर ये आँखे उठती है, इज्ज़त तार-तार करने के लिए 

बेटी,बहन, कोई भी रिश्ता नहीं, हवस मिटाने के लिए 
मानसिकता का दोष या बहाना है बस सताने के लिए 

हमबिस्तर करना चाहत सभी की सिर्फ़ वस्तु सी हूँ मैं 
इज्ज़त लेना, देना नहीं, सिर्फ़ हूँ मैं आज़माने के लिए 

किस से रूठे हम यूँ, कोई तो हो ? हमें मनाने के लिए 
पल भर साथ है, कोई नहीं है उम्र भर निभाने के लिए 
 कवि सम्मलेन 3 तृतीय ग़ज़ल 
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