एक नामुकम्मल दास्तां (भाग: तृतीय (द्वितिय)) अनुशीर्षक में पढ़ें **ये भाग ज़रा लम्बा है। इत्मिनान से पढ़ियेगा। बात बहुत बड़ी थी। लेकिन उसके लिए वो इतनी बड़ी वजह भी नहीं बन सकती थी कि, वो अपनी जान को छोड़ दे। उसने अपनी जान से कहा कि वो चिंता ना करे, वो उससे बहुत प्यार करता है, और हमेशा करेगा और पूरी ज़िन्दगी में कभी भी ये बात उन दोनों के रिश्ते पे असर नहीं डालेगी। वो अब भी रोते जा रही थी। जिसकी आँखों में वो एक बूँद आँसू नहीं देख सकता था, वो उसके सामने रोये जा रही थी। और वो कुछ भी ना कर पा रहा था। क्या करें वो? जल्दी ही उसे तरक़ीब ढूँढनी थी। पता नहीं अचानक क्या हुआ कि उसने कहा, "जान रोना बंद कर दो, वरना कान के