ज़रा सी आग पे उठता ये इतना धुआं क्यूं है? इस रत्ती भर ज़िंदगी पे इंसा को इतना गुमा क्यूं है? हो गई राख इक उम्र जलते - जलते, हो गई स्याह ये रात ढलते - ढलते। फिर रात के खजाने से खेलता ये सुबह का जुआ क्यूं है? ज़रा सी आग पे उठता ये इतना धुआं क्यूं है? ©Sumit Kumar #जुआ #Light