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shayari ki diary _*दर्द मेरा कागज़ पर बिकता रहा

shayari ki diary

_*दर्द मेरा कागज़ पर बिकता रहा 
  मैं बेचैन था रात भर लिखता रहा 
छू रहे थे सब बुलंदी अस्मा की 
     मैं सितारों के बीच चाँद की तरह छुपता रहा 
        दरख़्त होता कब का टूट गया होता 
   मैं नाज़ुक डाली था सबके आगे झुकता रहा 
             बदले यहां लोगो ने रंग अपने अपने ढंग से 
रंग मेरा भी निखरा पर में मेंहदी की तरह पिसता रहा 
         जिनको जल्दी थी वो बढ़ चले मंज़िल की ओर मैं समंदर से राज गहराई के सीखता रहा...

©Kamlesh Balawat दर्द मेरा कागज़ पर बिकता रहा 
  मैं बेचैन था रात भर लिखता रहा 
छू रहे थे सब बुलंदी अस्मा की 
     मैं सितारों के बीच चाँद की तरह छुपता रहा 
        दरख़्त होता कब का टूट गया होता 
   मैं नाज़ुक डाली था सबके आगे झुकता रहा 
             बदले यहां लोगो ने रंग अपने अपने ढंग से 
रंग मेरा भी निखरा पर में मेंहदी की तरह पिसता रहा
shayari ki diary

_*दर्द मेरा कागज़ पर बिकता रहा 
  मैं बेचैन था रात भर लिखता रहा 
छू रहे थे सब बुलंदी अस्मा की 
     मैं सितारों के बीच चाँद की तरह छुपता रहा 
        दरख़्त होता कब का टूट गया होता 
   मैं नाज़ुक डाली था सबके आगे झुकता रहा 
             बदले यहां लोगो ने रंग अपने अपने ढंग से 
रंग मेरा भी निखरा पर में मेंहदी की तरह पिसता रहा 
         जिनको जल्दी थी वो बढ़ चले मंज़िल की ओर मैं समंदर से राज गहराई के सीखता रहा...

©Kamlesh Balawat दर्द मेरा कागज़ पर बिकता रहा 
  मैं बेचैन था रात भर लिखता रहा 
छू रहे थे सब बुलंदी अस्मा की 
     मैं सितारों के बीच चाँद की तरह छुपता रहा 
        दरख़्त होता कब का टूट गया होता 
   मैं नाज़ुक डाली था सबके आगे झुकता रहा 
             बदले यहां लोगो ने रंग अपने अपने ढंग से 
रंग मेरा भी निखरा पर में मेंहदी की तरह पिसता रहा