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आप मेरी कल्पना हैं ये कैसे मानलूं कभी देखा ही नहीं

आप मेरी कल्पना हैं ये कैसे मानलूं
कभी देखा ही नहीं कैसे पहचानलूं
जख्म थोड़ा गहरा है,मरहम पे पहरा है
जिधर भी देखूं बहुरूपियों का चेहरा है
डरता हूं कैसे किसी से वरदान लूं
आप मेरी कल्पना.......
चुपचाप चल रहा हूं प्रश्नों की लेके गठरी
जर्जर हुआ आकार सिर्फ बच गया है ठटरी
"सूर्य"अस्त हो रहा है बस ऐसा जानलूं
आप मेरी कल्पना.......

©R K Mishra " सूर्य "
  #प्रश्न