कितना भी समझा लो उसे कहती है वो दोस्त है मेरा फिर तो तू ये बता मैं क्या लगता हूँ तेरा मेरी बातों सर फटता है उसकी बातों से नींद आती है उसके रूमालों से खुशबू क्या मेरे रूमालों से गंध आती है हार जाता हूँ उसके आगे इतना वो जिद्द करती है गैर से घंटो घंटो तक बाते मेरे बीना कैसे कट जाती हैं राते उसकी बातों से मोहबत की बारिश मेरे बातों से बरसते अंगारे चलो कोई नई दर्द ही सही तुम बस खुश रहो मेरे प्यारे ✍️ अमितेश निषाद ( सुमित ) कितना भी समझा लो उसे कहती है वो दोस्त है मेरा फिर तो तू ये बता मैं क्या लगता हूँ तेरा मेरी बातों सर फटता है उसकी बातों से नींद आती है