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दरख़्त सा जीवन मेरा जितने रिश्ते उतने हिस्सों म

दरख़्त सा 
जीवन मेरा 
जितने रिश्ते
उतने हिस्सों 
में बंटा हूं 

किसी के घर का
 दरवाजा बना
तो किसी की 
आग में जला हूं...

किसी ने काठ का
 खिलौना बना 
दिल बहलाया...
तो किसी के लिए
 लाठी बना हूं 

सब को छांव
 देकर स्वयं 
धूप में झुलसता
 रहा हरदम ...

खुद के लिए मैं
 कब जिया हूं ...??

माधुरी द्विवेदी कानपुर ✍️

©Madhuri Dwivedi
  #दरख्त