....... कितनी सुखद यात्रा करती हैं ना नदियां गंतव्य तक बिना पथ भटके शांत अविरल बहती रहती हैं, निःसंदेह उनके धैर्य की सीमा अनंत, अंतर्मन कोमल, ह्रदय बहुत विशाल होता होगा, जो स्वीकार करता मन का मैल धोने आते अनेकों पथिकों का अटूट विश्वास और पश्चाताप,! नाविक, जलचर, किनारे -किनारे पड़े पत्थर -कंकड़ भली -भांति और प्रयत्क्ष रूप से अभिभूत होंगे नदियों की चंचलता से, और मनुष्य के स्वार्थीपन से, अपने स्वार्थ के लिए हमने अपने जीवन की नकारात्मक ऊर्जा उड़ेल दी नदियों में, फिर भी वापिस घर लौट कर संतोष नहीं,! और देखो तो नदी फिर भी बह रही शांत -शांत अविरल, कभी किसी चित्रकार के उकेरे चित्र में, कभी फोटोग्राफर के कैमरे से ली गई तस्वीरों में कैद आकर्षण, कभी किसी लेखक या कवि के द्वारा लिखी गई कहानी या फिर अधूरी प्रेम व अन्य कविताओं में वर्णन, 'अल्प ' मुझे भी बनना नदी, बहना अपनी सहायक नदियों के संग , उदगम स्थल मेरा हिमालय मानसरोवर , पहाड़ों से बहती, पठारों तक विस्तृत भवसागर से बहती हुई गंतव्य मेरा वह ' अदृश्य शक्ति ',!💚