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साकार निराकार भीतर बाहर भिन्न दिसे में रूह से मुला

साकार निराकार
भीतर बाहर भिन्न दिसे
में रूह से मुलाकात करू
ज्ञान सागर में गोते लगाऊ
फिर भी जीवन की चाल में
हरबार उलझती जाऊ

©Manisha Keshavhttps://youtu.be/VpBnETi5sQM
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