चांद उथले सतह की वजह थामकर टिक पाने की हद से गुज़र जाता है पूछती है सहमकर मधुर यामिनी यूं सरककर इधर से किधर जाता है। सर्द अहसास की न सुखन थामता जलते जज़्बात से दूरियां मापता इधर से उधर हो चली ख्वाहिशें वादे करके हमेशा मुकर जाता है। कुछ ग़म की जदें कुछ खुशी की हदें रोज बनता है थोड़ा बिगड़ जाता है। टुकड़े टुकड़े में जीता रहा उम्र भर बस महीने के इक दिन संवर जाता है। प्रीति #उथली सतह #यामिनी(रात) #लुढकता चांद #वजह #बेवजह #yqdidi#yqhindiquotes #yopowrimo18