समझ नहीं आता क्या सही है काफी बीत गई थोड़ी रही है। वो पहले सा जोश कहाँ अब उमंगें बेतहाशा सी बढ़ रही हैं। सूरज उगता छिपता नहीं कभी गर्दिशे जमीं की समझ नहीं है। बहुत भटके जिंदगी बेजा हुई मंजिल का अता पता नहीं है। बी डर शर्मा चण्डीगढ़ #समयकमहै #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi