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White दिल में हाँ लबों पे ना इज़हार करूँ कैसे, बीच

White  दिल में हाँ लबों पे ना इज़हार करूँ कैसे,
बीच मझदार में नाव इश्क़ की पार करूँ कैसे..!
वो छुपी है चाँद सी बादलों में इस कदर,
इश्क़ में इज़हार यूँ आँखें चार करूँ कैसे..!

एहसासों अल्फ़ाज़ों में बसी है वो पर,
प्रफुल्लित मन से प्यार करूँ कैसे..!
मिलेंगे कभी कहीं किसी मोड़ पे जब,
ख़्वाबों में ही मिलने को तैयार करूँ कैसे..!

क़लम ख़ामोशी ओढ़ लेती है देख उसे,
काग़ज़ों को ख़ुश आख़िरकार करूँ कैसे..!
वो रूठती है बातों से अक्सर बहुत यूँ,
उसके दिल रुपी घर में ख़ुद को किरायेदार करूँ कैसे..!

जीते हैं हमने भी चुनाव कई इश्क़ के पर,
उसके योग्य ख़ुद को उम्मीदवार करूँ कैसे..!
बस अब कुछ नहीं कहना और बाकी सनम,
कब तक तन्हाई में उसका इंतज़ार करूँ कैसे..!

©SHIVA KANT(Shayar) #sad_dp #Izhaar–e–mohabbat
White  दिल में हाँ लबों पे ना इज़हार करूँ कैसे,
बीच मझदार में नाव इश्क़ की पार करूँ कैसे..!
वो छुपी है चाँद सी बादलों में इस कदर,
इश्क़ में इज़हार यूँ आँखें चार करूँ कैसे..!

एहसासों अल्फ़ाज़ों में बसी है वो पर,
प्रफुल्लित मन से प्यार करूँ कैसे..!
मिलेंगे कभी कहीं किसी मोड़ पे जब,
ख़्वाबों में ही मिलने को तैयार करूँ कैसे..!

क़लम ख़ामोशी ओढ़ लेती है देख उसे,
काग़ज़ों को ख़ुश आख़िरकार करूँ कैसे..!
वो रूठती है बातों से अक्सर बहुत यूँ,
उसके दिल रुपी घर में ख़ुद को किरायेदार करूँ कैसे..!

जीते हैं हमने भी चुनाव कई इश्क़ के पर,
उसके योग्य ख़ुद को उम्मीदवार करूँ कैसे..!
बस अब कुछ नहीं कहना और बाकी सनम,
कब तक तन्हाई में उसका इंतज़ार करूँ कैसे..!

©SHIVA KANT(Shayar) #sad_dp #Izhaar–e–mohabbat