शहरों की सड़कें तो, सुनी सुनी लग रही वाहनों के चालन में ,भी प्रतिबंध हो गए शहरों की हवाएं तो, गांव जैसी शुद्ध हुई लग रहा सारे जीवों ,के अनुबंन्ध हो गए राग द्वेष छोड़ कर ,अब सब मित्र यारों देख रामायण सब ,सत्यसंध हो गए माथे में जो लगते थे, नित प्रतिदिन यहाँ सारे वो श्री गंध आज ,अष्टगंध हो गए सारे वो श्री गंध आज,अष्टगंध हो गए रामकुमार पटेल 'यार' डिजेन्द्र कुर्रे