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उस अँधेरे के सन्नाटे में, कोई पीछा कर रहा था डरा स

उस अँधेरे के सन्नाटे में, कोई पीछा कर रहा था
डरा सहमा सा दबे पांव मैं, प्रकाश खोजने चला जा रहा था
सन्नाटे की गूँज चीख़ती, ...उस अंधियारी रातों में
जलती बुझती बत्ती,... कभी आगे कभी पीछे को
उजियारा देती मन को..., उस अंधियारी रातों में
भाग रहा था, पर किससे..? थी इक अबूझ पहेली ये
सुनो...कहा उसने, पर हमने भी अब ठानी ये
चाल बढ़ा दी निश्चय कर लिया, मुड़ कर देखूँगा ना अब
क्या व्यर्थ चला कौंधी अभिधा, मंज़िल क्यों नही आती ये
ठोकर खा कर चित्त को गिरा, आवाज़ सुनी अभिधा में पड़ा
एक बार तो देखो मुड़कर तुम, यूँ डरो नही... न भागो मुझसे
कितनी भी तुम चाल बढ़ा लो, कितना भी तुम दौड़ लगा लो
मेरे बिना मंजिल तो क्या तुम, राह भी भटकते रह जाओगे
कब तक भविष्य का साल ओढ़े तुम, मुझसे बचते रह पाओगे
कब तक भागोगे मुझसे, मैं उर का तुम्हारे हिस्सा हूँ
मैं अतीत तुम्हारी कोई बैर नही, मैं बिता तुम्हारा किस्सा हूँ
हूँ जो प्रिये मैं सिखलाती, आत्मग्लानि की राह बताती
देखो मेरे तुम अंग अंग को, महसूस करो जीवन रंग को
आत्मबोध होगा उर का, राहें भटकी मिल जायेंगी
होगा प्रवीण तू रस्ते का, अंतर्ज्योति जल जायेगी...। अतीत
उस अँधेरे के सन्नाटे में, कोई पीछा कर रहा था
डरा सहमा सा दबे पांव मैं, प्रकाश खोजने चला जा रहा था
सन्नाटे की गूँज चीख़ती, ...उस अंधियारी रातों में
जलती बुझती बत्ती,... कभी आगे कभी पीछे को
उजियारा देती मन को..., उस अंधियारी रातों में
भाग रहा था, पर किससे..? थी इक अबूझ पहेली ये
सुनो...कहा उसने, पर हमने भी अब ठानी ये
चाल बढ़ा दी निश्चय कर लिया, मुड़ कर देखूँगा ना अब
क्या व्यर्थ चला कौंधी अभिधा, मंज़िल क्यों नही आती ये
ठोकर खा कर चित्त को गिरा, आवाज़ सुनी अभिधा में पड़ा
एक बार तो देखो मुड़कर तुम, यूँ डरो नही... न भागो मुझसे
कितनी भी तुम चाल बढ़ा लो, कितना भी तुम दौड़ लगा लो
मेरे बिना मंजिल तो क्या तुम, राह भी भटकते रह जाओगे
कब तक भविष्य का साल ओढ़े तुम, मुझसे बचते रह पाओगे
कब तक भागोगे मुझसे, मैं उर का तुम्हारे हिस्सा हूँ
मैं अतीत तुम्हारी कोई बैर नही, मैं बिता तुम्हारा किस्सा हूँ
हूँ जो प्रिये मैं सिखलाती, आत्मग्लानि की राह बताती
देखो मेरे तुम अंग अंग को, महसूस करो जीवन रंग को
आत्मबोध होगा उर का, राहें भटकी मिल जायेंगी
होगा प्रवीण तू रस्ते का, अंतर्ज्योति जल जायेगी...। अतीत