बसंती मार्च की वो रंग भरी दुपहरी रंगों से सराबोर लोग और वहीं कहीं खड़ा मैं ढूँढता रहा हूँ तुम्हें दोनो मुठ्ठियों में लिए गुलाल हर आहट हर दस्तक़ पर नज़रे उधर उधर सीढ़ियों वाली चौखट पर ठिठक जाती रही हैं हर दफ़ा... हर दफ़ा वो मुठ्ठियाँ किसी और के गालों पर छपती, खुलती, सिमटती रही हैं हर दफ़ा मेरे पाँव किसी और के साथ थिरकते रहे हैं हर दफ़ा इशारों इशारों में बिरजू वही एक सवाल पूछता रहा है हर दफ़ा सीढ़ियों पर रंग गिरता रहा है और आख़िर तक ठीक आख़िर तक तुम्हरा... बस तुम्हारा इंतज़ार होता रहा है वो पीला गुलाल मेरे शर्ट की ज़ेब में अब भी रक्खा पड़ा है !! #वो_पीला_गुलाल