जिसे हम ढूढ़ते थे गलियों में दर-ब- दर , मिला तो वो मेरा अक्स निकला .. फिर मानो अश्क का हर बूंद बेमानी लगने लगा ! ! अपनी नादानियों को नजरंदाज कर कब तक हम शुकून पा सकते हैं ? अक्सर हम मृगमरिचिका की काल्पनिकता को समझ नहीं पाते और समझते भी है तो स्वीकारते नहीं !! काश कुछ पल के लिए ही सही हम सब खुद के हो जाए .. # be yourself #