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बहारों के सपने। (पार्ट 2) सुबह में देर से उठी, रात

बहारों के सपने।
(पार्ट 2) सुबह में देर से उठी, रात को देर से जो सोयी थी। रोज़ की तरह मॉम की डाँट खाकर क्लासेज गयी। 

टाइम देखा घड़ी में तो सिर्फ़ 5 मिनट्स बाकी थे 7 बजने में। मेरे सारे स्टूडेंट्स आ गये थे। मैंने अटेंडेंस ले कर उनको पढ़ाना शुरू किया। एक के बाद एक तीन बैच लेने के बाद मुझे थोड़ी देर के लिये ब्रेक मिला। सवा दस बजने वाले थे। ज़ोरों की भूख लगी थी इसलिये सोचा की कुछ खा लूँ।

मैं नीचे आये हुये रेस्टोरेंट पहुंची और इडली साम्बार का आर्डर दिया। में अपने आर्डर के तैयार होने का इंतज़ार कर रही थी की मेरी नज़र सामने के टेब
बहारों के सपने।
(पार्ट 2) सुबह में देर से उठी, रात को देर से जो सोयी थी। रोज़ की तरह मॉम की डाँट खाकर क्लासेज गयी। 

टाइम देखा घड़ी में तो सिर्फ़ 5 मिनट्स बाकी थे 7 बजने में। मेरे सारे स्टूडेंट्स आ गये थे। मैंने अटेंडेंस ले कर उनको पढ़ाना शुरू किया। एक के बाद एक तीन बैच लेने के बाद मुझे थोड़ी देर के लिये ब्रेक मिला। सवा दस बजने वाले थे। ज़ोरों की भूख लगी थी इसलिये सोचा की कुछ खा लूँ।

मैं नीचे आये हुये रेस्टोरेंट पहुंची और इडली साम्बार का आर्डर दिया। में अपने आर्डर के तैयार होने का इंतज़ार कर रही थी की मेरी नज़र सामने के टेब