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रास्ते हजार है मगर मंजिल का पता नहीं , चल पड़े है

रास्ते हजार है मगर मंजिल का पता नहीं , 
चल पड़े है उस डगर पे जिसका कोई अंत नहीं ।
तलासते है खुद को खुद ही की दुनिया में 
बेदर्द जमने की अब कोई परवाह नहीं।
कभी पूछा हवाओं से , कभी बहती फिजाओ से
कभी नदियों के उठते - गिरते लहरों से 
कि संभालना कैसे है खुद से खुद ही की दुनिया को ?
तभी अचानक एक हल्की सी आहट में सनसनाती आवाज आई
झुको जहां झुकना है लेकिन उठो , और
 इतनी रफ्तार से की पहाड़ की चट्टान भी टकराकर गिर पड़े।
हर रोज मौसम बदला है, 
तुम भी बदलो 
ना पूछो उनसे कुछ भी जिनको अपने ही कल का पता नहीं।

©Shagun Singh
  #Life experiences
shagunsingh3342

Shagun Singh

New Creator

#Life experiences

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