वीराना है अन्त काल, संदिग्ध है मार्ग जन्म मरण की वेदना ज्यूँ डसे गरल नाग छोड़ चला साथी बन्धु छुटे प्यार अनुराग क्यूँ लिप्त तू मोह लोभ में, बना वीतराग | नभ के जलद नदी संग जलधि में हैं आते ये उड़ पुनः जलद में परिवर्तित हो जाते आत्मा जल कण सी परिवर्तित होती रहती जड़ है आत्मा, क्यूँ मृत्यु से तुम घबराते | उड़ चली सोन चिरैया न जाने कौन देश छोड़ गयी खाली पिंजरा रहा कुछ न शेष माया है महा ठगनी रचे दिन रात द्वेष इंदु कहे प्रभु आओ कृपा करो हरो क्लेश | वीराना