बिना समझे कोई भी मान्यता तारी नहीं होती। बिना ठोकर लगे हासिल समझदारी नहीं होती।। अगर हम होते कायल अगले पल की मौत जीने के। तो अपनी ज़िन्दगी भी मौत से हारी नहीं होती।। सदा सीता-सावित्री के समर्पण त्याग की शक्ति। सहज स्वीकार्यता होती है, बेचारी नहीं होती।। हवा-पानी सा अपनी मस्त धुन में बहने वालों का। न छोड़े रस्ता ऐसी कोई दुश्वारी नहीं होती।। ©Santosh Pathak #समझदारी #