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पड़ा जो तेरे प्रेम में फिर चढ़ा न कोई रंग मेरा मुझमे

पड़ा जो तेरे प्रेम में फिर चढ़ा न कोई रंग
मेरा मुझमें कुछ ना रहा सबकुछ छोड़ चला मैं तेरे संग
तन-मन में वो ऐसे बस गया जैसे कस्तूरी में बसे सुगंध
मुझसे वो ऐसे जुड़ गया जैसे डोरी संग उड़े पतंग

मुरली की धुन ऐसी बजी जैसे जल में उठे तरंग
एक कान्हा को छोड़के दूजा मीरा को नहीं पसंद
वो संग मेरे ऐसे बह रहा जैसे मछली बहे पानी के संग
संग उसके हर रंग रंगीन है बिन उसके हर रंग है बेरंग... सुप्रभात।
रंगों की एक दुनिया आपके अंदर भी मौजूद है। उसे ढूँढिये।
#रंगतुम्हारेअंदर #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
पड़ा जो तेरे प्रेम में फिर चढ़ा न कोई रंग
मेरा मुझमें कुछ ना रहा सबकुछ छोड़ चला मैं तेरे संग
तन-मन में वो ऐसे बस गया जैसे कस्तूरी में बसे सुगंध
मुझसे वो ऐसे जुड़ गया जैसे डोरी संग उड़े पतंग

मुरली की धुन ऐसी बजी जैसे जल में उठे तरंग
एक कान्हा को छोड़के दूजा मीरा को नहीं पसंद
वो संग मेरे ऐसे बह रहा जैसे मछली बहे पानी के संग
संग उसके हर रंग रंगीन है बिन उसके हर रंग है बेरंग... सुप्रभात।
रंगों की एक दुनिया आपके अंदर भी मौजूद है। उसे ढूँढिये।
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