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न मैं कभी जन्मा हूँ, न मैं कोई अंत हूँ। मैं अनादि

न मैं कभी जन्मा हूँ, न मैं कोई अंत हूँ। 
मैं अनादि, अनश्वर, अनन्त हूँ। 
न कोई सुख, न दुख, न शत्रु, न मित्र, 
न कोई अपना, न पराया
न मेरा, कोई रुप है, न कोई आकार। 
मैं निरंतर हूँ, मैं निराकार।
मुझे न ही भूख है न प्यास, मैं सबसे दूर हूँ और सबसे पास। 
जलती धूप मैं हूँ, तपती धरती मैं हूँ, 
मैं चाँद की शीतलता, बारिश की बूंद मैं हूँ।
मैं उग्र, क्रोधी, प्रलय घोर हूँ, मैं शांति, प्रेम, करुणा, अघोर हूँ।
शुद्ध-अशुद्ध, नियम-अनियम, विकार-अविकार मैं हूँ। 
जहाँ सबकुछ है वहाँ भी मैं, जहाँ कुछ नहीं वहाँ भी मैं ही हूँ।

©Ananta Dasgupta #shivaya #anantadasgupta
न मैं कभी जन्मा हूँ, न मैं कोई अंत हूँ। 
मैं अनादि, अनश्वर, अनन्त हूँ। 
न कोई सुख, न दुख, न शत्रु, न मित्र, 
न कोई अपना, न पराया
न मेरा, कोई रुप है, न कोई आकार। 
मैं निरंतर हूँ, मैं निराकार।
मुझे न ही भूख है न प्यास, मैं सबसे दूर हूँ और सबसे पास। 
जलती धूप मैं हूँ, तपती धरती मैं हूँ, 
मैं चाँद की शीतलता, बारिश की बूंद मैं हूँ।
मैं उग्र, क्रोधी, प्रलय घोर हूँ, मैं शांति, प्रेम, करुणा, अघोर हूँ।
शुद्ध-अशुद्ध, नियम-अनियम, विकार-अविकार मैं हूँ। 
जहाँ सबकुछ है वहाँ भी मैं, जहाँ कुछ नहीं वहाँ भी मैं ही हूँ।

©Ananta Dasgupta #shivaya #anantadasgupta
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Ananta Dasgupta

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