जिसमें कोई रस नहीं उस रास्ते में जाए क्यों दुनियाँ, "जहां कोई राग नी उस बैराग की ओर क्यों मुड़े दुनियाँ,, "जहां अंधेरे से दूर भागते, "शोरगुल मनोरंजन के आकर्षण में दुनियाँ, 'ध्यान की तरफ क्यों मुड़े दुनियाँ, "जब मन भाए रंगरेलियां। "फिर क्यों अध्यात्म की ओर जाए दुनियाँ, "जब मन भर गया था सिद्धार्थ गौतम का, "मनोरंजन और वासना से, " तब उन्होंने जिंदगी की सच्चाई जानी, "दुखों से क्यों होता है इंसान चूर चूर, "उसकी पहचान बताई, "आत्ममंथन आत्मज्ञान ही सच्चा आनंद, "फिर क्यों मुड़े उस ओर दुनियाँ, "उनको तो दुख तकलीफों में जीना, "मन मस्तिष्क को झकझोरना, "शांति की तलाश में फिर क्यों मुड़े दुनियाँ पूजा-पाठ को आध्यात्मिक से नहीं जोड़ना चाहिए । आप मंदिर जाते हो पूजा पाठ करते हो अच्छी बात है। पर यह आध्यात्मिक नहीं है। आध्यात्मिक होना आपने अंदर आत्म चिंतन और मनन करना आत्मज्ञान यह सब है। आंखें बंद कर सोचना है। मैं कहां सही हूं या कहाँ गलत हूं