जीवन का पारमार्थिक यापन ही वह विधि है जो मनुष्य को सत्कर्मों की ओर प्रेरित करती है। निस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा, परोपकार तथा जीव-मात्र के प्रति प्रेम भाव रखना पारमार्थिक जीवन के लक्षण हैं। मनुष्य में इस प्रकार की सद्वृत्तियाँ केवल आध्यात्मिक मनोभूमि पर ही अंकुरित एवं पल्लवित हो सकती हैं। जीवन को आध्यात्मिक साँचे में ढाल लेने से पारमार्थिकता की सिद्धि सहज ही हो जाती है। प.श्रीराम शर्मा आचार्य