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उम्र से पहले ही सयानी हो जाती हैं, कर आखें नम सभ

 उम्र से पहले ही सयानी हो जाती हैं,
 कर आखें नम सभी की विदा हो जाती हैं बेटियाँ।
 बाबुल का प्यार, माँ का दुलार, और ना जाने कितना कुछ, पिटारी में भर ले जाती हैं बेटियाँ। दहलीज पार करते ही बाबुल की, आखिर क्यों पराई हो जाती हैं बेटियाँ। 
जिस अंगना चहका करती थीं हमेशा, उसी घर आकर अदब और सलीका सिखाती हैं बेटियाँ। चंद हफ्तों की मोहलत ले, ससुराल से मायके चली आती हैं बेटियाँ। 
अब मायके से ज्यादा, पिया के घर को चाहती हैं बेटियाँ। 
माँ से हर बात पर ना नुकर करने वाली, खुद माँ बन, माँ को ही नसीहत देती हैं बेटियाँ। 
बाबुल से हर बात की जिद मनवाने वाली, अब जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती हैं बेटियाँ ।

रश्मि वत्स।

©Rashmi Vats
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