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तुम प्रेम और मैं शान्ति, तुम सुरापान घन अन्धकार,

तुम प्रेम और मैं शान्ति,
तुम सुरापान घन अन्धकार,

मैं हूँ मतवाली भ्रान्ति।

तुम दिनकर के खर किरण - जाल, 
मैं सरसिज की मुस्कान,

तुम वर्षों के बीते वियोग, 
मैं हूँ पिछली पहचान।

- सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

©Jasmine of December
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