लफ़्ज़ों के इस बहते दरिया में एक छोटी सी लहर लिखना चाहती हूं धूप छांव के बदलते इस खेल की अपनी कोई दोपहर लिखना चाहती हूं बंदिशों से परे, हरियाली से घिरे कभी ख्वाबों का वो महल लिखना चाहती हूं एक जगह जहां बस्ती हूं हर पल, कल्पनाओं का वो शहर लिखना चाहती हूं बेसोच झट से खिंची जो डोर रिश्तों की अहंकार का वो कहर लिखना चाहती हूं दे कर सुर ताल कुछ अपने जज़्बातों को, अपनी प्रिय राग यमन लिखना चाहती हूं निराकार से है सब लेखन मेरे अब कोई अच्छी ग़ज़ल लिखना चाहती हूं *लिखना चाहती हूं* #yqbaba #yqdidi #ग़ज़ल #लेखन #हिंदी #यमन #लिखनाचाहतीहूं #लिखनाचाहताहूँ