पिता! तुझसे मिली साँसों की नगरी और मिली अमृत की गगरी कहते हो बात तुम खरी-खरी बातों में नहीं है गोटा-जरी पिता! ऐसे-वैसे तो तुम नहीं तेरी सोच है शानदार,है सुनहरी # पिता! तुझसे मिली साँसों की नगरी