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मेरे ईश्क़ की तौहीन कुछ इस तरह करी उसने, ना मर सके

मेरे ईश्क़ की तौहीन कुछ इस तरह करी उसने, ना मर सके ना जी सके बस बिखर कर हम पाषाण रह गए।
दिल को भी शिकायत होनी लगी अब मुझसे, क्या कमी रखी थी ऐसी तुमने जो इतने टुकड़ो में मुझे तोड़ा उसने।
हमारे दिल की इस हालत के जिम्मेदार भी हम खुद थे भला किसे हम खुद को बेगुनाह साबित करते।
 🌷सुप्रभात🌷
👉🏻 प्रतियोगिता- 250

🙂आज की ग़ज़ल प्रतियोगिता के लिए हमारा शब्द है 

 👉🏻🌹"इश्क़ की तौहीन"🌹 

🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य  है I कृप्या
मेरे ईश्क़ की तौहीन कुछ इस तरह करी उसने, ना मर सके ना जी सके बस बिखर कर हम पाषाण रह गए।
दिल को भी शिकायत होनी लगी अब मुझसे, क्या कमी रखी थी ऐसी तुमने जो इतने टुकड़ो में मुझे तोड़ा उसने।
हमारे दिल की इस हालत के जिम्मेदार भी हम खुद थे भला किसे हम खुद को बेगुनाह साबित करते।
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