मेरा मन यायावर,! राजा हैं, रजवाड़े हैं; मंदिर, मस्जिद, अखाड़े हैं,! जो गले तक खाए हैं, वो भी तो मुँह फाड़े हैं,! मरता याचक एक मुट्ठी को, कोई तो झाँके बाहर,! मेरा मन यायावर,!! Read full poem in caption. मेरा मन यायावर,! अपनी ही धुन में मस्त, कभी उत्तेजित कभी पस्त कभी यहाँ कभी वहाँ, सदा करता रहता गश्त सोचा कहाँ कभी इसने, कहाँ ले जाती है डगर? मेरा मन यायावार,! कभी धूप में, कभी छाँव में; कभी शहर में कभी गाँवों में,