भूलकर गिले-शिकवे होले हम हमजोली और ऐसे खेले होली की खुशियों से भर जाए हम सबकी झोली. ना दारू ना भांग मिले, अंग से अंग मिले, ऐसे खेले होली बिन पिचकारी की तन रंग मन रंगे वतन रंगे ऐसे मीठा बोले बोली. शायर:- विवेक मंडल #vivek mandal#1245