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करते तो हो तुम हर क्षण शर्मसार, करते हो न जाने कित

करते तो हो तुम हर क्षण शर्मसार,
करते हो न जाने कितने अत्याचार।
बहु, बेटी, माँ और बहन...
करी सबकी इज्ज़त तुमने तार-तार।

ओ इंसान के वेश में भेडियों,
अपनी हवस मिटाने को...
बनाते हो मासूमों को शिकार,
क्यों करते हो उनका बलात्कार? करते तो हो तुम हर क्षण शर्मसार,
करते हो न जाने कितने अत्याचार।
बहु, बेटी, माँ और बहन...
करी सबकी इज्ज़त तुमने तार-तार।

ओ इंसान के वेश में भेडियों,
अपनी हवस मिटाने को...
बनाते हो मासूमों को शिकार,
करते तो हो तुम हर क्षण शर्मसार,
करते हो न जाने कितने अत्याचार।
बहु, बेटी, माँ और बहन...
करी सबकी इज्ज़त तुमने तार-तार।

ओ इंसान के वेश में भेडियों,
अपनी हवस मिटाने को...
बनाते हो मासूमों को शिकार,
क्यों करते हो उनका बलात्कार? करते तो हो तुम हर क्षण शर्मसार,
करते हो न जाने कितने अत्याचार।
बहु, बेटी, माँ और बहन...
करी सबकी इज्ज़त तुमने तार-तार।

ओ इंसान के वेश में भेडियों,
अपनी हवस मिटाने को...
बनाते हो मासूमों को शिकार,
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