चल, चलते हैं। चल, चल ए रुह चलते हैं किसी और जिस्म में, यहां तो सब खत्म है, कुछ भी बचा नहीं। कितने ज़ुल्मो सितम से मैंने इसको गुज़ारा है,जिसका तुझे सहारा था वो तो अब ख़ुद बेसहारा है। चलती फिरती एक ज़िंदा लाश है जिसको मैं ढो ही,फिर तू अब किस उम्मीद में इसमें है सो रही। ज़ख्मों के बीच इसमें कुछ भी बचा नहीं,जो भी दिया इसको,वो इसको जंचा नहीं। फ़िर सोचती हूं इसको मैने दिया ही क्या,ये छलनी छलनी सीना,ये दिल भरा भरा। कुछ ख़्वाब भी अधुरे, कुछ शौक अनकहे, कुछ ख्वाहिशें दबी सी,और दर्द इंतेहा। तुझको जो इतने साल था अब तक जकड़ रखा,जा अब तू आज़ाद है,खुल के सांस ले ज़रा। फिर थोड़ी देर रूक के कहीं साथ बैठे हम,कुछ तेरी सूनू और कुछ अपने भी कहूं गम। फिर चलते हैं वहां जहां सबकुछ नया नया,जहां प्यारी सी हंसी हो और तोतली ज़ुबां। जहां इक मुस्कुराने की कोई वजह ना हो,जहां सिर्फ़ प्र सिर्फ़ प्यार हो,कोई सजा ना हो। khud se baaten khud ki hi