मैं अकेला ही रह गया। रंगो के इस त्योहार में मैं अकेला रह गया, लोग मनाते रहे खुशियाँ और मैं तन्हा हो गया। ना कुछ़ ख़ास माँगा था मैंने जिंद़गी से और, ना कुछ़ ख़ास बनने की आश मैंने बाकी रखी थी। ना जानें क्यों फ़िर भी में जिंद़गी के इस सफ़र में, ख़ुद से ही ख़ुद का मुख़बिर भी ना बनके रह गया।