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वो खिड़की, जिससे निकल कर सपने आते थे मेरी आंखों मे

वो खिड़की, जिससे निकल कर
सपने आते थे मेरी आंखों में।
रात भर जाग कर देखती थी मैं चांद को,
सुबह होने के इन्तजार में।
कि आज कौनसी हलचल होने वाली है
हमारे दिल के बाजार में।। दिल के बाजार में.....
वो खिड़की, जिससे निकल कर
सपने आते थे मेरी आंखों में।
रात भर जाग कर देखती थी मैं चांद को,
सुबह होने के इन्तजार में।
कि आज कौनसी हलचल होने वाली है
हमारे दिल के बाजार में।। दिल के बाजार में.....