माहवारी ये माहवारी कोई भ्रम नहीं है, वो लड़की है इसमें कोई शर्म नहीं है , और हम ,उन मासिक धर्म पर उंगली उठाए, ये हमारा धर्म नहीं है।। 1) की कक्षा 7 का प्रथम दिवस उसको याद आता था, कि कई प्रयत्नों के बाद उसने अपना बैग लगाया था, अश्रु वर्षा के मध्य , उसने मां को जब पुकारा था , कुछ हिचक कर, उसने फिर कुछ ना बताया था।। प्रथम दिवस का सूर्य , ढलने को उतर रहा था , पर उसकी पीड़ा का उदय तो अब हो रहा था। मुरझाए हुए चेहरे के साथ, उसने घर में प्रवेश किया ही था, की मां को देख , अश्रु बांध टूट गया था। read caption ©Shivank Shyamal 2) वो 12वें साल कुर्ते के पीछे, एक दाग का डर लगने लगता था। असहजता और मरोड़ का भूचाल सा आ जाता था , जांघ, पेट और आंत में पीड़ा का समंदर उफना जाता था , लेकिन तब भी , सिसकियों में उसको पूरी रात गुजारना आता था।। खून के उन चंद दागों ने कितना डराया था , पांच दिवसीय झंझट ने कितना रुलाया था , उस पहले दर्द को उसने, मां को जब बताया था ।