हुस्न में अब भी वो नज़ाकत है इश्क में अब भी वो ही आफत है ईंट दर ईंट जिसको बांधा था ख्वाबों की धुंधली सी इमारत है तेरे जलवों को देखकर जाना खून में अब भी वो हरारत है बस करो मूंद भी लो अब पलकें इनमें अब भी वो ही शरारत है तुम मेरे दिल की धड़कने सुन लो इनमें अब भी वो ही बगावत है यूँ न माथे पे ये शिकन लाओ क्या तुम्हें मुझसे कुछ शिकायत है अब तुम्हें मैं गज़ल पुकारूँगा तू समर की लिखी इबारत है