मानव या मानवता की सेवा ही वास्तविक अर्थ में ईश्वर की सेवा है मनुष्य सच्चिदानंद और अनादि परब्रह्मा की जीवित कृति है इसलिए उनकी सेवा साक्षात परमात्मा की पूजा है और यह सभी उपासना ओं से ऊपर है मानवता का अवश्य मानव मात्र के प्रति सेवा भाव सदाचारी व्यवहार और सभी जीवो के प्रति दया भाव से है महात्मा बुध के अनुसार मनुष्य में है जो क्रोध को प्रेम से बुराई को इच्छा इसे स्वार्थी को उदारता से और झूठे व्यक्ति को सच्चाई से जीत सके प्रेम और करुणा आवश्यकताएं हैं विलासिता नहीं उनके भाव में मानवता जीवित नहीं रह सकती जिस प्रकार दरखास्त की शोभा फल से नदी की शोभा नीर से उद्यान की शोभा फूल से और मंदिर की सुबह भगवान से होती है उसी प्रकार मनुष्य की शोभा मानवता से होती है मानवता ही समस्त सद्गुणों का बीज है जो सदा हृदय में विद्यमान रहता है मानवता के बिना प्रत्येक गुण सुनने है ©Ek villain #मानव की सेवा मानवता की सेवा है इसे बनाए रखें