युवराज के गरज को सुन कौरव हुए व्याकुल, मन में तीव्र शंका उठ रही उनके कि, कहां से आ गया पांडव कूल में ऐसा प्रतिभा कुल, कृष्ण भगिना के ललकार से, कौरव सेना पीछे जा रही थी, अब सेनापति द्रोर्ण और मामा, शकुनि की भी बुद्धि चकरा रही थी, कर्ण दुर्योधन-दुशासन तो दूर हो रहे थे हठी बालक के आगे उनके वीरता भी शुन्य हो रहे थे, तोड़ रहा इस भांति अभिमन्यु चक्रव्यूह के दरवाजे को, मानो कोई जैसे आग का गोला जा रहा है, कौरव सेना को काटते-काटते भष्म किया जा रहा है, अब मच चुका था कौरव सेना में हाहाकार, त्राहि माम,त्राहि माम की गूंज रही थी, बस हर तरफ यही एक पुकार, एक-एक करके अभिमन्यु ने, छह दरवाजे को तोड़ लिया, सातवें दरवाजे को तोडने वाला था कि, रथ के पहिए को युद्धभूमि ने अपने में फेर लिया, उसने सोचा कि रथ को उबार लूं, मगर जयद्रथ ने चलाया है धोखे में बाण, जिसे ना समझ सका है युवराज, घायल हो गिरा युद्धभूमि, जिसे पापियों ने है चारो तरफ से घेर लिया....!! -Sp"रूपचन्द्र" खण्डकाव्य:चन्द्रपुत्र के तेजशीलता Part-3