था सरदार यदि लौह पुरुष, वह भी तो लौह नारी थी, दुनियां में जिनका डंका बजता , वो स्वराज सबकी प्यारी थी । चली गई वो यूं छोड़कर, सबके नैनों में अश्रु देकर, कोयल सी जिसकी वाणी थी, राष्ट्र संयुक्त की जो रानी थी, वो स्वराज सबकी प्यारी थी । वो नारी शक्ति की परिभाषा थी , वो मेहनत व कुशलता की पराकाष्ठा थी, वजीरे विदेश के कौशल से निहित, वो स्वराज सबकी प्यारी थी । रजिया सी जो रजनैतिज्ञ थी, ज्ञान सरस्वती सा था जिसमे, थी वो पतिवर्ता और जिसने माँ की भी परिभाषा जानी थी, वो स्वराज सबकी प्यारी थी, वो स्वराज सबकी प्यारी थी। #सुषमा #स्वराज पर मेरे द्वारा लिखित कुछ काव्य पंक्तियां। देश की ऐसी बेटी को कोटि कोटि प्रणाम। ऐसी और कविताऐं पढ़ने के लिए मेरे ब्लॉग पर जाएं, लिंक है । https://vatsa7281.blogspot.com/?m=1