#रेशमी ख्वाबों की ओढ़नी.... कौन देख पाता जज्बातों की चादर को बसती हैं कविता की आत्मा जिसके कण कण में कौन देख पाता रेशमी ख्वाबों की ओढ़नी ज्यों बुनी गम और खुशी के कुछ धागों से ताकि रुह समा सके उसमें कौन देख सका मन की तमन्नाओं को ज्यों आ सके आवाज बनकर अल्फाजों में ये ओढ़नी तो ख्यालों संग छेडती हमारी संवेदनाओं को ज्यों उतरती कलम की स्याही से कोरे कागज में बस वो ही समझता खुशी के साथ दर्द भी जिसके हृदय में बसे होते सारे अहसास मन के हर मौसम में.. @शब्दभेदी किशोर ©शब्दवेडा किशोर #रेशमी_ख्वाबोंवाली_ओढ़नी