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सदियों से आज तक भर गए लाखों प्रन्ने न जाने कितनी क

सदियों से आज तक भर गए लाखों प्रन्ने
न जाने कितनी कविताओं और कहानियों से
लेकिन इस समाज का नजरिया 
आज भी बदलाव चाहता है....
 सदियों से आज तक भर गए लाखों प्रन्ने
न जाने कितनी कविताओं और रचनाओं से
लेकिन इस समाज का नजरिया 
आज भी वैसा ही है,
कुछ बदलाव दिख ही नहीं रहा 
शायद लिखने वाले लिखते ही रह गए
अच्छा लिखने की चाहत में
समझाने का वक्त मिला तो अलविदा हो गए
सदियों से आज तक भर गए लाखों प्रन्ने
न जाने कितनी कविताओं और कहानियों से
लेकिन इस समाज का नजरिया 
आज भी बदलाव चाहता है....
 सदियों से आज तक भर गए लाखों प्रन्ने
न जाने कितनी कविताओं और रचनाओं से
लेकिन इस समाज का नजरिया 
आज भी वैसा ही है,
कुछ बदलाव दिख ही नहीं रहा 
शायद लिखने वाले लिखते ही रह गए
अच्छा लिखने की चाहत में
समझाने का वक्त मिला तो अलविदा हो गए