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रंगों की दुकान से दूर हाथों में, कुछ सिक्के गिनते

रंगों की दुकान से दूर हाथों में,
कुछ सिक्के गिनते मैंने उसे देखा।
एक गरीब बच्चे कि आखों में,
मैने होली की खुशियो को मरते देखा।

थी चाह उसे भी नए कपडे पहनने की,
पर उन्ही पूराने कपडो को मैने उसे साफ करते देखा।

हम करते है सदा अपने ग़मो कि नुमाईश,
उसे चुप-चाप ग़मो को पीते देखा।

जब मैने कहा, “बच्चे, क्या चहिये तुम्हे”?
तो उसे चुप-चाप मुस्कुरा कर “ना” में सिर हिलाते देखा।

थी वह उम्र बहुत छोटी अभी,
पर उसके अंदर मैने ज़मीर को पलते देखा।

दिन के उजाले में सारे शहर की होली की खुशियो मे,
मैने उसके हँसते, मगर बेबस चेहरें को देखा।

हम तो जिंदा है अभी शान से यहा,
पर उसे जीते जी शान से मरते देखा।

लोग कहते है, त्योहार होते हैं जिंदगी मे खुशियों के लिए,
तो क्यो मैंने उसे मन ही मन मे घुटते और तरसते देखा?
गौरव दीक्षित (राहुल) " गरीबों के त्योहार
रंगों की दुकान से दूर हाथों में,
कुछ सिक्के गिनते मैंने उसे देखा।
एक गरीब बच्चे कि आखों में,
मैने होली की खुशियो को मरते देखा।

थी चाह उसे भी नए कपडे पहनने की,
पर उन्ही पूराने कपडो को मैने उसे साफ करते देखा।

हम करते है सदा अपने ग़मो कि नुमाईश,
उसे चुप-चाप ग़मो को पीते देखा।

जब मैने कहा, “बच्चे, क्या चहिये तुम्हे”?
तो उसे चुप-चाप मुस्कुरा कर “ना” में सिर हिलाते देखा।

थी वह उम्र बहुत छोटी अभी,
पर उसके अंदर मैने ज़मीर को पलते देखा।

दिन के उजाले में सारे शहर की होली की खुशियो मे,
मैने उसके हँसते, मगर बेबस चेहरें को देखा।

हम तो जिंदा है अभी शान से यहा,
पर उसे जीते जी शान से मरते देखा।

लोग कहते है, त्योहार होते हैं जिंदगी मे खुशियों के लिए,
तो क्यो मैंने उसे मन ही मन मे घुटते और तरसते देखा?
गौरव दीक्षित (राहुल) " गरीबों के त्योहार