एक लड़की थी सांवली सी। जरा थोड़ी, बावली सी। मन की थी वह बड़ी ही नेक पर कोई भी नहीं सकता था उसे देख। न जाने उसका होता हर कहीं जाना हर बात में उसके सामने रंग का आ जाना। है रंग की यह काली सी और मेरी उम्र थी जरा बाली सी गुणों को मेरे किसी ने ना जाना रंग के पीछे पड़ा था हाथ धोकर जमाना हर बार में ताना यही मिलता मेरा दिल भी न जाने कितनी बार संभलता। सुंदरता मेरे हमेशा आड़े आती मेरी काबिलियत किसी को ना भाती। तभी मेरी मां ने मुझे कहा गुणों की होती है इस जग में पूजा और तेरे जैसा नहीं कोई दूजा अपनी काबिलियत को तू इतना कर ऊंचा। कि तेरा मजाक उड़ाने वालों का सिर हो जाए नीचा रंग से कोई महान नहीं बनता और गोरे रंग वाला ही इंसान नहीं बनता। फिर रब ने उसे यह आवाज लगाई। तेरे जीने की तो जिंदगी पगली अब है आई तू खुद से ही खुद की एक पहचान बना दुनिया की बातें छोड़ तू अपना एक नया जहान बना। ज्योति गुर्जर #Racism